कैसे ले पाती हो तुम इस ज़हरीली फि़ज़ां में सांस,
क्यों तुम्हें चुभतीं नहीं, वो गंदी ,लालची निगाहें
जो आंखों से ही नोच लेना चाहती हैं तुम्हारा मांस ?
ये आज़ादी का जश्न तुम्हारे लिए नहीं है,
ये जश्न उन दरिंदों के लिए है जो तीन महीने की बच्ची से लेकर अस्सी साल की महिला को टटोलते हैं और बलात् भोगते हैं,
फिर भी कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता,
और वो आज़ाद हवा में सांस लेते घूमते हैं
और तुम….
और तुम डर कर अपने अपने घरों में दुबक जाती हो,
शाम के साए तुम्हें डराते हैं, कितने ही अनहोने ख्वाब तुम्हें डराते हैं।
आज़ाद तो तुम अपने अपने घरों में भी नहीं हो,
तुम पीढ़ी दर पीढ़ी अपने परिवार का मान संभालने के लिए जुटी रहती हो,
खुद का मान भूले रहती हो।
क्यूं खुद को भूल जाती हो तुम ?
क्यूं तुम ये याद नहीं रखतीं कि हड्डी और मांस के पुतले में एक दिल भी धड़कता है,
कि तुम्हारे पास भी एक दिमाग है जिसे तुम खुद के लिए इस्तेमाल कर सकती हो ,
कि तुम्हारी पसंद ना पसंद भी मायने रखती है,
कि तुम्हारी ज़ुबान को भी चटखारे लेना आता है,
कि तुम्हें भी तराने गाना आता है।
कि तुम्हें भी कुछ रंग पसंद हुआ करते थे,
तुम्हारे भी कुछ सुनहरे ख्वाब हुआ करते थे ।
कि तुम भी चित्र में रंग भरना जानती थीं,
कि तुम भी कहानी, कविता लिखना जानती थीं। ?
क्या तुम्हारा दिल नहीं करता दोस्तों के साथ ठहाके लगाने को,
क्या तुम्हारा मन नहीं करता चौराहे पर , पान की दुकान पर अड्डा जमाने को ?
कभी कभी तुम्हारा भी दिल करता होगा देर तक सोए रहने का ,
एक दिन रसोई से छुट्टी ले कर बाहर जाकर खाने का ?
एक दिन बच्चों की झिक झिक, मां बाबूजी की खिच खिच से कहीं दूर भाग जाने ,
सिर्फ एक दिन बेपरवाही से जीने का ।
भागी भागी दफ्तर आती जाती हो,
जिम्मेदारी से काम करने के बावजूद प्रमोशन नहीं पाती हो,
घर पर कभी बच्चे ,कभी पतिदेव तुम्हें guilt trip पर ले जाते हैं,
हां ! तुम्हारी तनख्वाह पे अपना पूरा हक जमाते हैं।
क्या तुम्हें पता है तुम्हारे एटीएम का पिन ?
क्या तुम्हें आती है नेटबैंकिंग ?
कहां इन्वेस्ट किए हैं तुम्हारे कमाए हुए पैसे ?
क्या तुम नहीं जानना चाहती कहां गए तुम्हारे कमाए हुए पैसे ?
तुम पढ़ी लिखी तो किस के लिए ?
तुम अगर नहीं पढ़ीं तो किसके लिए?
दिल करता है तुम्हें झिंझोड़ कर उठा दूं,
किसी दिन तुमको तुमसे ही मिला दूं।
ख़ुद से मिल कर देखो, खुद से बातें कर के देखो….
फिर तुम खुद को आज़ाद समझ पाओगी।
ख़ुद की बनाई हुई दिमागी बेड़ियों से निकल कर देखो,
फिर तुम आज़ाद हिंदुस्तान का हिस्सा कहलाओगी।
इला पचौरी