अब जूते भी होंगे इको फ्रेंडली

खास तरह के खादी के कपड़ों का है जूते का ऊपरी हिस्सा । सोल नेचुरल रबर का, ऐड़ा जूट का और सिलाई सूती धागे की । किनारों की बाइडिंग में बिना क्रोम वाले चमड़े का प्रयोग ।

गिरीश पांडेय

लखनऊ । दौर इकोफ्रेंडली का है। जल,जीवन, जंगल और जमीन को संरक्षित करते हुए भावी पीढ़ी को खुशनुमा भविष्य देने की फिक्र पूरी दुनिया को है। सर्वाधिक प्रदूषण फैलाने वाला चमड़ा उद्योग भी इसका अपवाद नहीं। इस उद्योग की ओर से इसकी पहल भी शुरू हो गयी है। वह भी गंगा के किनारे के बसे कानपुर शहर से। यह वही शहर है जो गंगा के प्रदूषण के लिहाज से सर्वाधिक कमजोर कड़ी रहा है। यहां गंगा की अविरलता और निर्मलता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार का प्रमुख एजेंडा है। इस सबंध में वहां बहुत कुछ हो चुका है और हो रहा है। हाल ही में कानपुर मंडल की समीक्षा के दौरान भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि कानपुर में गंगा के किनारे देश का सबसे खूबसूरत रिवर फ्रंट बनाएंगे।

चमड़ा उद्योग से होने वाले प्रदूषण के इस दाग को धोने का जिम्मा उठाया है इसी उद्योग से जुड़े वहां के केमिकल इंजीनियर राजेंद्र जालान ने। अब वह इकोफ्रेंडली जूते बना रहे हैं। परंपरागत तौर पर बनने वाले जूतों में क्रोम युक्त चमड़ा और सिंथेटिक का प्रयोग होता है। चमड़े में मिक्स क्रोम ही प्रदूषण की मुख्य वजह होता है। इको फ्रेंडली जूतों में ऊपर का पूरा हिस्सा खादी के खास तरह के कपड़ों का है । सोल केरल के कार्क मिक्स रबर का है तो पंजों और एड़ियों को आराम देने वाला सुख तल्ला लैटेक्स फोम का। जूते के पिछले हिस्से को सख्त बनाने के लिए जूट का प्रयोग किया गया है। सिलाई नायलॉन की जगह खास तरह के बने मजबूत सूती धागों की है। यहां तक कि पैकिंग भी रिसाइकल्ड कागज़ की है। इसके ऊपर जो छपा है उसके लिए भी प्राकृतिक स्याही का प्रयोग किया जा रहा है। विदेशों में इनको खूब पसंद भी किया जा रहा है।

कानपुर के केमिकल इंजीनियर ने की पहल

मालूम हो कि राजेंद्र जालान 1974 में एचबीटीआई (हरकोर्ट बटलर टेक्निकल इंस्टीट्यूट) से केमिकल इंजीनियरिंग करने के बाद से ही इस इंडस्ट्री में हैं। उनकी कानपुर शहर और देहात में जूते की दो इकाईयां हैं। इनमें बने जूतों का निर्यात अमेरिका, जर्मनी, स्पेन, आस्ट्रलिया, दक्षिण अमेरिका और दक्षिण कोरिया आदि देशों में हाेता है।

यह पूछने पर कि यह खयाल आपको कैसे आया? बकौल राजेंद्र जालान, कोरोना के कारण वैश्विक स्तर पर बहुत कुछ बदला है। बदलाव की यह प्रक्रिया जारी है। कोरोना का संक्रमण खत्म हो जाने के बाद भी बहुत कुछ बदल जाएगा। लोग स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति जागरूक हुए हैं। ऐसे में मुझे लगा कि भविष्य टिकाऊं (सस्टेनेिबल )और इकोफ्रेंडली चीजों का ही होगा। लिहाजा पूरी तरह इकोफ्रेंडली हाथ से बुने खादी के कपड़ों को बेस बनाकर जूते बनाने की सोची।

लखनऊ आकर अपर मुख्य सचिव सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योग और खादी एवं ग्रामोद्योग नवनीत सहगल से संपर्क किया तो उन्होंने ना केवल मुझे प्रोत्साहित किया बल्कि हर संभव मदद का भरोसा भी दिया। आज आप जो इकोफ्रेंडली जूता देख रहे हैं वह उन्हीं के द्वारा बहुत कम समय में खादी का कपड़ा उपलब्ध कराए जाने से संभव हो सका। और फिर सिलसिला शुरू हो गया। जालान को उम्मीद है कि आने वाले समय में खादी से बने जूतों को राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पर एक अलग पहचान मिलेगी।

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