गिरीश पांडेय
चमड़ा उद्योग से होने वाले प्रदूषण के इस दाग को धोने का जिम्मा उठाया है इसी उद्योग से जुड़े वहां के केमिकल इंजीनियर राजेंद्र जालान ने। अब वह इकोफ्रेंडली जूते बना रहे हैं। परंपरागत तौर पर बनने वाले जूतों में क्रोम युक्त चमड़ा और सिंथेटिक का प्रयोग होता है। चमड़े में मिक्स क्रोम ही प्रदूषण की मुख्य वजह होता है। इको फ्रेंडली जूतों में ऊपर का पूरा हिस्सा खादी के खास तरह के कपड़ों का है । सोल केरल के कार्क मिक्स रबर का है तो पंजों और एड़ियों को आराम देने वाला सुख तल्ला लैटेक्स फोम का। जूते के पिछले हिस्से को सख्त बनाने के लिए जूट का प्रयोग किया गया है। सिलाई नायलॉन की जगह खास तरह के बने मजबूत सूती धागों की है। यहां तक कि पैकिंग भी रिसाइकल्ड कागज़ की है। इसके ऊपर जो छपा है उसके लिए भी प्राकृतिक स्याही का प्रयोग किया जा रहा है। विदेशों में इनको खूब पसंद भी किया जा रहा है।
कानपुर के केमिकल इंजीनियर ने की पहल
यह पूछने पर कि यह खयाल आपको कैसे आया? बकौल राजेंद्र जालान, कोरोना के कारण वैश्विक स्तर पर बहुत कुछ बदला है। बदलाव की यह प्रक्रिया जारी है। कोरोना का संक्रमण खत्म हो जाने के बाद भी बहुत कुछ बदल जाएगा। लोग स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति जागरूक हुए हैं। ऐसे में मुझे लगा कि भविष्य टिकाऊं (सस्टेनेिबल )और इकोफ्रेंडली चीजों का ही होगा। लिहाजा पूरी तरह इकोफ्रेंडली हाथ से बुने खादी के कपड़ों को बेस बनाकर जूते बनाने की सोची।
लखनऊ आकर अपर मुख्य सचिव सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योग और खादी एवं ग्रामोद्योग नवनीत सहगल से संपर्क किया तो उन्होंने ना केवल मुझे प्रोत्साहित किया बल्कि हर संभव मदद का भरोसा भी दिया। आज आप जो इकोफ्रेंडली जूता देख रहे हैं वह उन्हीं के द्वारा बहुत कम समय में खादी का कपड़ा उपलब्ध कराए जाने से संभव हो सका। और फिर सिलसिला शुरू हो गया। जालान को उम्मीद है कि आने वाले समय में खादी से बने जूतों को राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पर एक अलग पहचान मिलेगी।