काशी की विश्वविख्यात देव दीपावली की ब्रांडिंग पर पीएम के जरिए वैश्विक मुहर लगवाने में योगी सरकार सफल

    • अरविन्द उपाध्याय

    वाराणसी। काशी की विश्वविख्यात देव दीपावली में इस बार कई नए आयाम जुड़े। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जो देव दीपावली के पौराणिक उत्सव में शामिल होकर सनातन धर्म की आध्यात्मिक भव्यता के साक्षी बने।  देव दीपावली की रात में पुण्य सलिला गंगा के अर्द्ध चंद्राकार घाटों की ज्योतिर्मय श्रृंखला अद्भुत छटा बिखेरती है। घाटों पर असंख्य दीयों में टिमटिमाती रोशनी की मालाएं,विद्युत झालरों की झिलमिलाहट, घंटों की आवाज, मंत्रों और शंखों की मनमोहक गूंज ने लोगों को स्वार्गिक आनंद की अनुभूति दे दी। गंगा पार की रेती की सजावट को भी इस बार घाटों की तरह ही काफी महत्व दिया गया। रेत पर बनी कलाकृतियों और पूरे तट को जगमग करते तरह-तरह के माध्यमों ने चारों तरफ अद्भुत छटा बिखेरी।

    इस बार पौराणिक महोत्सव की ऐसी अद्भुत अनुभूति महसूस हुई जैसे कि देवगण स्वर्ग से धरती पर उतर आए हों। पुराणों में मान्यता है कि काशी की देव दीपावली देवताओं के ही विजय दिवस की प्रतीक है। इस बार देव दीपावली की अद्भुत छटा ने यहां उपस्थित होकर देखने वालों के साथ साथ टीवी स्क्रीन या अन्य माध्यमों के जरिए देखने वालों को अविस्मरणीय अनुभव दिया। क्रिसमस,नव वर्ष और विशेष अवसरों पर विभिन्न देशों में होने वाले लेजर शो एवं ध्वनि-प्रकाश इफेक्ट आयोजनों के सम तुल्य देव दीपावली के इस उत्सव में अतिरिक्त रूप से रची बसी आध्यात्मिकता का संदेश काशी में ही नहीं संसार में भी वर्चुअल पहुंचा।

    कार्तिक पूर्णिमा को चंद्रमा का संपूर्ण प्रकाश पृथ्वी को प्रकाशित करता है और दीयों के प्रकाश के साथ मिलकर एक विशेष प्रकार की आभा उत्पन्न करता है। जिससे देवताओं के प्रसन्नता की अनुभूति हर किसी को होती है। ऐसा लगता है मानों पृथ्वी पर पूरा देवलोक उतर आया हो। विभिन्न कार्यक्रमों के सुव्यवस्थित आयोजन और समूचे उत्सव को भव्य एवं दिव्य बनाने के लिए प्रदेश सरकार कोई कमी नहीं छोड़ी। राम नगरी अयोध्या की दीपावली के बाद बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की देव दीपावली को अलौकिक रूप प्रदान करने में प्रदेश की योगी सरकार पूरी तरह सफल रही।‌देव दीपावली पर काशी के सभी 84 घाट दीपकों से रोशन होते हैं। हर साल लाखों लोग इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए पहुंचते हैं।

    इस बार के विराट दीपोत्सव में यहां 11 लाख से अधिक दीये जलाए गए थे। विद्युत झालरों की सजावट ने रही सही कमी पूरी कर दी। सभी प्रमुख घाटों पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों, गंगा नदी में पानी की लहरों पर लेजर शो, प्रोजेक्शन के माध्यम से काशी की महिमा, शिव महिमा एवं गंगा अवतरण के भव्य प्रदर्शन ने आयोजन को विराट स्वरूप दे दिया। मान्‍यता है कि भगवान विश्वनाथ ने धरती पर आकर तीन लोक से न्यारी काशी में देवताओं के साथ गंगा घाट पर दिवाली मनाई थी।इसलिए काशी की देव दीपावली के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को पहली बार देश के शासनाध्यक्ष की उपस्थिति से मिली संवैधानिक मान्यता ने काशी के लिए संभावनाओं के नए द्वार खुलेंगे।

    विश्व की प्राचीनतम और अविनाशी नगरी काशी में ‌कोरोना संक्रमण के कारण पर्यटन उद्योग के थमे कदम को उत्सव से बेहतर कारोबार शुरू होने की उम्मीद जगी है।‌आस और विश्वास यह भी है कि भले ही विदेशी सैलानी नहीं आएंगे लेकिन स्थानीय तीर्थ यात्रियों तथा विधान से रोजी-रोजगार के अच्छे खासे इंतजाम हो जाएंगे। देव दीपावली की रात गंगा के आंचल में दीप सजेंगे तो देवाशीष से धन भी बरसेंगे। देव दीपावली के अर्थशास्त्र पर नजर डालें तो करीब 80 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार होता रहा है।

    बनारस के लिए यह खास देव दीपावली आस्था के साथ बड़े कारोबारी मौकों का संदेश लेकर भी आई है। केंद्र और राज्य सरकार द्वारा बनारस की नए सिरे से की जा रही ब्रांडिंग के असर से भविष्य में अच्छे आर्थिक परिणाम निकलने की उम्मीदें जगी हैं। वाराणसी में बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर खुलने से पहले सरकार काशी की देव दीपावली को भी दिया गया बड़ा स्वरूप इस धर्म नगरी को वैश्विक पटल पर स्थापित करने में सहायक होगा। अयोध्या, प्रयागराज और काशी की आध्यात्मिक विरासत को वैश्विक मंच मिलना निश्चित रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश के विकास में भी नया आयाम जोड़ेगा।

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