गांव की बेटी- लवी सिंह
भोली भाली कुछ चंचल सी
निश्छल प्रेम लुटाती है,
ठान ले एक बार जो मन में,
वो कर के दिखलाती है,
जी हां ये गांव की बेटी कहलाती है।।
लीपती है चूल्हा भी वो,
गाय, बकरी, भैंस भी चराती है,
घर के आंगन में सदैव
खुशियों की रंगोली सजाती है,
जी हां ये गांव की बेटी कहलाती है।।
भले उम्र छोटी है अभी,
पर बाबा की आंखें पढ़ जाती है,
रखती है फूंक फूंक कर कदम,
स्वयं की नई पहचान बनाती है,
जी हां ये गांव की बेटी कहलाती है।।
लाचार, कमज़ोर, कठपुतली नहीं है वो अब,
स्वतंत्र मंचन कर पंचम लहराती है,
भरकर हौंसलों की उड़ान, नया समाज बनाती है,
उतारो जिस क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ कर दिखलाती है,
जी हां ये गांव की बेटी कहलाती है।।