मां – डॉ लवी सिंह

मां एक शब्द नहीं,
पूरी दुनिया है
मां है तो सब है,
मेरी मां ही मेरा रब है।
मां से ही हर त्योहार है,
मां है तो हर मौसम में बहार है।
दिन से रात, रात से दिन,
मां कभी थकती नहीं है।
न जाने कितनी बातों को
मन में छुपाए रहती है,
किन्तु मां कभी लड़ती – झगड़ती नहीं है।
यूं तो पूरे दिन सजाती – संवारती है वो कभी घर, कभी बच्चों और सभी को,
पर वो खुद संवरती नहीं है।
मां है तो सुबह, दिन, दोपहर,
शाम, रात सब गुलज़ार हैं,
वो कहते हैं न……
मां की डांट में ही छुपा मां का प्यार है।
मां है तो सब है, मेरी मां ही मेरा रब है।।
मेरी दिन भर की बक – बक से मां कभी बोर नहीं होती,
हां गर मां रूठ जाए….
तो मानो जैसे भोर नहीं होती
मां मुस्कुराती है तो दुनिया हसीन लगती है,
मां के हंसने पर ज़िंदगी रंगीन लगती है।
मां ग़म में ढांढस बंधाती है,
परेशानियों से लड़ना सिखाती है,
मां सिर पे हाथ रख दे, कस के गले लगा ले, अपनी गोद में सुला ले,
तो सारे दुख दूर हो जाते हैं।
मां की ममता में डूबा सारा संसार है,
मां है तो जीवन में खुशियां अपार हैं।
मां है तो सब है, मेरी मां ही मेरा रब है।।
असिस्टेंट प्रोफेसर इनवर्टिस विश्वविद्यालय
संस्थापिका – उम्मीद एक नया सवेरा वेलवेयर सोसायटी