यह पारसी मस्का आपका दिल पिघला देगा
अगर आपकी आंखों में ऐसे सपने हैं जिन्हें पूरा करना बेहद मुश्किल लगता है तो फिल्म मस्का आपका मन मोह लेगी। यदि आप पुरानी दुनिया के या कहें सत्तर से नब्भे के दशकों के आकर्षण को पसंद करते हैं और किसी भी बड़े शहर की यात्रा करते समय फैंसी रेस्तरां में जाने के बजाय पुरानी शैली के कैफे की तलाश करते हैं तो फिल्म मस्का आपको अपनी तरफ खींचेगी । अगर आपके पारसी दोस्त हैं और आप उनके साथ घूमना-फिरना पसंद करते हैं तो फिल्म मस्का आपको उनके जीवन की एक छोटी सी झलक दिखाएगी ।
पारसी धनसक और साधारण कहानियां हमेशा बिकती हैं
मनीषा कोइराला ने अपने पहले ही संवाद और पारसी मां की भूमिका से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनका पारसी लहज़ा काफी असली लगता है और फिल्म “लगे रहो मुन्नाभाई” में सरदार के रूप में बोमन ईरानी के नकली पंजाबी लहज़े जैसा नहीं है। नायिका के रूप में नहीं बल्कि चरित्र अभिनेत्री के रूप में उनकी वापसी काफ़ी सराहनीय है। एक अभिनेता का ए ग्रेड नायिका से चरित्र अभिनेत्री में वैध परिवर्तन किसी भी उम्रदराज़ अभिनेता के लिए परिपक्वता का संकेत है।
भारत में केवल 60,000 पारसी बचे हैं और उनमें से अधिकांश मुंबई और गुजरात में रहते हैं। पारसियों को अमीर, बुद्धिमान और सुंदर धनसक प्रेमी लोग माना जाता है। पारसी परिवार पर आधारित फिल्म वास्तव में एक नवीनता है, जो लंबे समय से फिल्मों के ज़रिये नहीं देखी गई है। एक विचार में पारसियों को नायक के रूप में प्रस्तुत करना अपने आप में एक उम्दा ख़याल है। मैंने एक बार पारसियों पर फिल्म बनाने के बारे में सोचा था। पारसी समुदाय के बारे में बहुत कुछ अनकहा और अनसुना है जिसे लोगों को अवश्य जानना चाहिए। एक माँ के रूप में मनीषा कोइराला का अपने बेटे से संवाद “ये तेरे पापा के हाथ हैं।” ये ईरान से भारत एक विशेष प्रतिभा लेके आये” भारत में रह रहे सभी पारसियों के इतिहास को संक्षेप में प्रस्तुत करता है।
90 के दशक में मस्का जैसी सरल कहानियां टीवी पर आमतौर पर देखी जाती थीं। अब वह स्थान ओटीटी ने ले लिया है। मस्का एक ऐसी साधारण कहानी है जो उच्च चरमोत्कर्ष और एक सरल समस्या-सरल समाधान सूत्र के बिना भी आपको सहानुभूति का एहसास कराती है। ये फिल्म आपको अपने जीवन की उलझी हुई समस्याओं को हल करने जैसा अहसास कराती है, ये आपको अपने सपनों का आत्मनिरीक्षण करने पर मजबूर करती है। आपको आपकी वास्तविकताएँ दिखाने के लिए ऐसी पूर्वानुमानित कहानियाँ भी काम कर सकती हैं और ये मस्का में साफ़-साफ़ दिखाई देता है। हालाँकि कहानी शुरू से ही बहुत पूर्वानुमानित है और आप स्पष्ट रूप से जानते हैं कि मुख्य किरदार रूमी अंततः बॉलीवुड अभिनेता बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए अपना कैफे नहीं बेचेगा, फिर भी आप इस फिल्म की सादगी की वजह से इसे अंत तक शांति से देखते रहते हैं। ।
आज की वास्तविकता में पुराने ज़माने के आकर्षण की तलाश करें
फिल्म देखने के बाद आपमें से जो लोग रुस्तम कैफे देखने की इच्छा रखते हैं उन्हें कैफे की तलाश में मुंबई नहीं जाना चाहिए बल्कि अपने ही शहर में ऐसे पुराने आकर्षक और साधारण कैफे ढूंढने का प्रयास करना चाहिए। पुणे की बेहद लोकप्रिय कयानी बेकरी जाएं जिसकी अपनी एक पुरानी विरासत है। संयोग से वह भी पारसियों द्वारा चलाया जाता है और लाखों लोग वहां जाते हैं। मैंने व्यक्तिगत रूप से अपनी सभी पुणे यात्राओं के दौरान हमेशा कयानी बेकरी से अखरोट केक खरीदे हैं। बैंगलोर में चर्च स्ट्रीट पर के बीचों बीच बना “इंडिया कॉफ़ी हाउस” आपको वैसी ही सुन्दर सूकूनी राहत देता है। बैंगलोर में “इंडिया कॉफ़ी हाउस” के पुराने जानकार अभी भी एमजी रोड पर इसके पुराने स्थान को याद करते हैं जो अब की तुलना में आकार में इससे तीन गुना बड़ा था। कयानी बेकरी की उसी गली में पहली मंजिल पर एक पारसी रेस्तरां है जहां आप जाकर पात्रानी मच्छी और धनसाक जैसे मशहूर पारसी व्यंजन खा सकते हैं।
कुछ स्वीकार्य खामियाँ
प्रीत कमानी द्वारा निभाए गए एक युवा पारसी लड़के रूमी द्वारा ऑडिशन देने वाले संघर्षरत अभिनेता के रूप में कास्टिंग डायरेक्टर अभिषेक बनर्जी को डांटना और उन्हें यह बताना कि उनकी ऑडिशन प्रक्रिया एक घोटाला है, देखा जाए तो एक बढ़िया विचार है। लेकिन असल में किसी भी संघर्षरत अभिनेता के पास कास्टिंग-एजेंटों या कास्टिंग-निर्देशकों को डांटने की हिम्मत नहीं है। सभी कलाकार केवल पीठ-पीछे कास्टिंग-निर्देशकों की आलोचना करते हैं लेकिन उनके सामने हमेशा विनम्र बने रहते हैं या विनम्र बने रहने का नाटक करते हैं।
रूमी ईरानी और नीतिका दत्ता की आकर्षक जोड़ी दर्शकों का ध्यान ज़्यादा देर तक नहीं खींच पाती। यहाँ तक कि फिल्म देखते- देखते मैं अपने सभी महत्वपूर्ण व्हाट्सएप संदेशों को पढ़ रहा था। जब रूमी अपने कैफ़े में खाना पकाता है और पहली बार अपनी माँ को अपने कला-कौशल से आश्चर्यचकित करता है तो धीमी गति वाला संगीत ठीक से फिट नहीं बैठता है। इस दृश्य में और जान डालने की ज़रूरत है। यही वह समय है जब एक बेटा अपने पिता और दादा की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए पहली बार दिल से सहमत होता है।
रूमी को अपनी आने वाली फिल्म में काम देने का वादा करने वाला फिल्म निर्देशक सभी दृश्यों में धोखेबाज क्यों दिखता है? फिल्म निर्देशक का रूमी पर उसके खराब अभिनय कौशल के लिए चिल्लाना कुछ अवास्तविक सा लगता है। कोई भी फिल्म निर्माता कभी भी ऐसे अभिनेता पर चिल्लाने की हिम्मत नहीं करेगा जो कथित तौर पर फिल्म का निर्माता भी हो। “उर्दू में टेबल को तल्लाफुज़ कहते हैं”। यह अब तक सुना या लिखा गया सबसे मूर्खतापूर्ण हास्य संवाद है। लेकिन हाँ, नए अभिनेता अजीब उच्चारण और अभिनय संबंधी गलतियाँ करते हैं।
आपको मस्का क्यों देखनी चाहिए?
यदि आप किसी भी क्षेत्र में संघर्षरत हैं तो मस्का देखें, यदि आप फिल्म उद्योग से संबंधित हैं तो मस्का देखें, यदि आप अभिनेता हैं या बनना चाहते हैं तो मस्का देखें, यदि आपका पारिवारिक व्यवसाय अच्छी तरह से स्थापित है और आप उसे जारी नहीं रखना चाहते हैं तो मस्का देखें।
अगर आप दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस में मोहन सिंह पैलेस की छत पर स्थित “इंडिया कॉफी हाउस”, या सीपी में हनुमान मंदिर के ठीक सामने कॉफी होम, पुणे में एमजी रोड पर राजकुमार सिनेमा के सामने कयानी बेकरी, या बंगलौर के कोशी रेस्तरां के प्रशंसक रहे हैं तो मस्का देखें। बैंगलोर में सेंट-मार्क्स रोड के चौराहे पर, या भले ही आप अक्सर सीपी के ए-ब्लॉक में मूल केवेंटर्स कैफे में जाते रहे हों । इन सभी भोजनालयों की एक पुरानी विरासत और इतिहास है।
आनंददायक अंत
किरदार पर्सिस द्वारा रूमी को रुस्तम-कैफे पर एक कॉफी-टेबल-बुक लिखने का विचार, जो अंततः उसका दिल बदल देता है, एक बहुत ही सुखद आश्चर्य के रूप में आया। हालाँकि एक दर्शक के रूप में आप उन्हें कैफे में तस्वीरें लेते और वीडियो बनाते हुए देख सकते थे, लेकिन यह पूरी तरह से अप्रत्याशित विचार था जिसने फिल्म निर्माताओं के पक्ष में शानदार ढंग से काम किया। रूमी द्वारा अपने कैफे की बिक्री से इनकार करने और उस पर अपना कब्ज़ा वापस लेने के बाद सभी पुराने चार ब्लेड वाले पंखों को चालू करना, ऊपर से लिया गया एक ज़ोरदार शॉट है और यह दिखाने के लिए कि रुस्तम-कैफे कहीं नहीं जा रहा बल्कि यहीं रहेगा। एक दर्शक के रूप में आप असल में कैफे से लगाव और कहानी में तनावमुक्त महसूस करते हैं। यदि किसी स्थान की विरासत चली जाती है, तो यह न केवल मालिकों को बल्कि उन आगंतुकों को भी निराश करता है जो उस स्थान पर अपना समय, विश्वास और प्यार निवेश करते हैं।
रूमी की आत्म-स्वीकृति और अंत में एक दार्शनिक प्रतिक्रिया “हर सपना सच नहीं होता!” मुख्य अभिनेता बनना चाहता था पर मुख्य अभिनेता हूं नहीं” उपदेशात्मक लगता है लेकिन भारतीय दर्शकों को यही चाहिए। अध्याय से सीधे पाठ, बिल्कुल किसी पाठ्य पुस्तक की तरह। एक अभिनेता-निर्देशक होने के नाते, मैंने अपने जीवन में कई महत्वाकांक्षी अभिनेताओं को देखा है, जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी की अन्य गतिविधियों और व्यवसायों की ओर रुख किया, लेकिन कभी भी इतनी ईमानदारी और विनम्रता से स्वीकारोक्ति नहीं की कि उनमें वास्तव में प्रतिभा और अपने सपनों को पूरा करने की गहराई की कमी है।
इकिगई-जापानी सिद्धांत! रूमी ने बहुत अच्छे से समझाया। मेरा बन-मस्का मेरी इकिगाई है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में नकली और खोखले सपनों का पीछा करने के बजाय अपनी खुद की ताकत और आपका दिल कहां है, इसे पहचानना महत्वपूर्ण है। इसके अलावा ब्रेकअप को शालीनता से कैसे प्रस्तुत किया जाए और यह पीढ़ी वास्तव में एक-दूसरे के प्रति सभ्य होने की कला कैसे सीख सकती है, यह भी अच्छी तरह से प्रस्तुत किया गया है! वे निश्चित रूप से मस्का से यह सीख सकते हैं कि कैसे प्रेम संबंधों को बचाने या ख़तम करने के लिए कैसे एक दूसरे से खुलकर संवाद करना है और इस प्रक्रिया में अपने साथी को मानसिक चोट नहीं पहुँचानी है। एक सफल सम्बन्ध होने के बाद व्हाट्सएप या फेसबुक पर एक-दूसरे को ब्लॉक करना सबसे बकवास तरीका है रिश्ते को ख़तम करने का । ऐसा करना एक तरह से साथ बिताए गए खूबसूरत उन खूबसूरत पलों को बर्बाद कर देता है।
विरासतों को जीवित रखना
दिल्ली के 70 साल पुराने केवेंटर्स कैफे का मामला भी हजारों आगंतुकों के लिए ऐसा ही दिल दहला देने वाला कदम था। बहुत कम लोग जानते हैं कि मूल केवेंटर दिल्ली में केवल दो थे और हैं, एक ए ब्लॉक के कोने में और दूसरा आनंद विहार में जिसे चचेरे भाई चलाते हैं। अब फ्रैंचाइज़ी की बिक्री या विवाद के बाद केवेंटर्स बंद होने के बाद, वे केवेंटर्स ब्रांड का उपयोग नहीं कर सकते हैं और जो लोग एलान के साथ केवेंटर्स नाम का इस्तमाल कर रहे हैं वे इस दशकों पुरानी विरासत के वास्तविक निर्माता नहीं हैं। ऐसी पुरानी जगहों को जीवित रखना एक कठिन काम है और दर्शक वास्तव में इस फिल्म से रचनात्मक रूप से यही सीख सकते हैं।
सभी संघर्षरत अभिनेताओं और सपने देखने वालों को ये फिल्म अवश्य देखनी चाहिए।
रूमी के मित्र पर्सिस द्वारा पूछे गए एक प्रासंगिक प्रश्न के उत्तर में “क्या तुम एक अच्छे अभिनेता हो?” युवा रोमी एक अभिनेता के रूप में अपने प्रमाणपत्र के बारे में बात करता है! यह उन युवाओं की कड़वी सच्चाई है जो सोचते हैं कि प्रमाणपत्र होना किसी भी चीज़ में प्रतिभा का प्रमाण है। और इस दृश्य को दिखाना लेखक-निर्देशक की परिपक्वता के उच्च स्तर को दर्शाता है! बहुत खूब।!
इसलिए यह उन सभी संघर्षरत अभिनेताओं के लिए अवश्य देखी जाने वाली फिल्म है जो सपनों के शहर मुंबई में कुछ बड़ा करना चाहते हैं। जैकपॉट खुलने की उम्मीद रखने वाले अपनी किस्मत आज़माने के लिए बॉलीवुड को एक जुआ या कैसीनो के रूप में देखने की बजाय अभिनेताओं के लिए अपनी ताकत, हुनर और कमजोरियों को जानना ज़्यादा ज़रूरी है।
“अपने सपनों को पूरा करने के लिए आपको अपनी मेहनत से कमाई गई संपत्ति बेचनी होगी, न कि अपने माता-पिता की संपत्ति” यह फिल्म के माध्यम से बहुत अच्छी तरह से बताई गई एक और सीख है। “क्या आप जो भी कर रहे हैं उसमें खुश हैं” जैसे गंभीर सवाल को फिल्म मस्का में अच्छी तरह से पेश किया गया है।
फ़िल्म समीक्षक काबुलीवाला कमल प्रूथी