डूबते सूर्य को व्रतियों ने दिया अर्घ्य, अब उदयीमान का इंतजार

वाराणसी में छठ महापूर्व की धूम है। लोक आस्था के रंग और उमंग में डूबा हुआ है। चहुंओर छठ के गीत गूंज रहे हैं-कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए…, जोड़े-जोड़े नारियल तोहे चढ़इबो ना…, ऐ छठी मइया होई ना सहइया..। सज-धजकर तैयार छठ घाटों पर रविवार को डूबते हुए सूर्य को व्रतियों ने अर्घ्य दिया। इसी के साथ अब उदीयमान सूर्य का इंतजार शुरू हो गया है। सोमवार सुबह छठ घाटों पर उदयीमान सूर्य की आराधना की जाएगी। सूर्योदय के समय भगवान भास्कर का एक झलक मिलते ही उन्हें अर्घ्य दिया जाएगा। और चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ संपन्न हो जाएगा। यह पर्व धीरे धीरे पूरे भारत वर्ष में छठ सबसे बड़ा पर्व होता जा रहा है। यही कारण है कि इसे लोक आस्था का महापर्व कहा जाता है। साफ-सफाई और बिजली सज्जा के बाद चंद्रावती,कैथी, बाबतपुर, गौरा, कित्ता, बराईं का विहंगम दृश्य देखते बना डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष महत्व ऐसी मान्यता है कि सूर्य षष्ठी यानी कि छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के वक्त सूर्यदेव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसलिए संध्या अर्घ्य देने से प्रत्यूषा को अर्घ्य प्राप्त होता है। प्रत्यूषा को अर्घ्य देने से इसका लाभ भी अधिक मिलता है। मान्यता यह है कि संध्या अर्घ्य देने और सूर्य की पूजा अर्चना करने से जीवन में तेज बना रहता है और यश, धन , वैभव की प्राप्ति होती है। शाम को अस्ताचलगामी सूर्यदेव को पहला अर्घ्य दिया जाता है इसलिए इसे संध्या अर्घ्य कहा जाता है। इसके पश्चात विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है। संध्या को अर्घ्य देने के लिए छठव्रती पूरे परिवार के साथ दोपहर बाद ही घाटों की ओर रवाना होते हैं। इस दौरान पूरे रास्ते कुछ व्रती दंडवत करते जाते हैं। सूर्य देव को अर्घ्य देने से पहले रास्ते भर उन्हें जमीन पर लेटकर व्रती प्रणाम करते हैं। दंडवत करने के दौरान आस पास मौजूद लोग छठव्रती को स्पर्श कर प्रणाम करते हैं, ताकि उन्हें भी पूण्य की प्राप्ति हो सके।

अर्घ्य के लिए फलों और ठेकुआ से सजाया जाता सूप

संध्या अर्घ्य देने के लिए शाम के समय सूप और बांस की टोकरी को ठेकुआ, चावल के लड्डू और फलों से सजाया जाता है। पूजा के सूप को व्रती बेहतर से बेहतर तरीके से सजाते हैं। लोटे (कलश) में जल एवं दूध भरकर इसी से सूर्यदेव को संध्या अर्घ्य दिया जाता है। इसके साथ ही सूप की सामग्री के साथ भक्त छठी मईया की भी पूजा अर्चना करते हैं। रात में छठी माई के भजन गाये जाते हैं और व्रत कथा का श्रवण किया जाता है।
इन नियमों के पालन से विशेष लाभ इस दिन कुछ खास नियमों का पालन करने से व्रती को इसका लाभ मिलता है। सूर्य षष्ठी के दिन सुबह के समय जल्दी उठकर स्नान करके हल्के लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। एक तांबे की प्लेट में गुड़ और गेहूं रखकर अपने घर के मंदिर में रखने से भी पूरे परिवार को इसका लाभ मिलता है। माना जाता है कि लाल आसन पर बैठकर तांबे के दीये में घी का दीपक जलाने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। भगवान सूर्य नारायण के सूर्याष्टक का 3 या 5 बार पाठ करना फलदायी होता है। खरना के बाद शुरू हुआ 36 घंटे के निर्जला व्रत छठ पूजा के दूसरे दिन शनिवार को खरना का व्रत था। शाम के समय छठ माई की पूजा करने के बाद व्रतियों ने प्रसाद ग्रहण किया। इसके बाद 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत शुरू हुआ। यह व्रत 31 अक्टूबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद संपन्न होगा। लक्ष्मी पांडेय ने भगवान सूर्य की उपासना करती हुई कही की छठी मैयां की जय सूर्योपासना के अनुपम एवं आस्था के महापर्व छठ पूजा की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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