“वाह रे खुदा”

प्रतिभा जवड़ा "प्रिया"

वाह रे खुदा तू भी बड़ा अजब गजब है
इस मतलब की दुनिया में बेमतलब सा बना दिया…..
तलब थी मोहब्बत का पीर बनने की तूने हमें काफ़िर बना दिया…

अनचाही बस्ती में चाहत का एक घर बसाया करते थे….
नफरतों की इस दुनिया में तूने, हमें बेपनाह मोहब्बत का मसीहा बना दिया…..

शौकीन हुआ करते थे कभी हम भी अपने नाम के…
पर अफसोस तूने सरेआम, इस शहर में हमें बदनाम सा बना दिया…..

हर रोज एक सपना रुठा, पल पल ये दिल टूटा ,….
फिर भी तूने हमें, नाम का शहंशाह बना दिया…
तमाम नकली चेहरों के शहर में तूने, एक असली का चेहरा बना दिया….

नकाब की इस दुनिया में बेनकाब से रहते थे हम…
झूठों के संसार में हमें, सच्चाई का पुतला बना दिया

वाह रे खुदा तू भी बड़ा अजब गजब है
इस मतलब की दुनिया में बेमतलब सा बना दिया….

सिकंदर हुआ करते थे कभी हम भी अपनी दुनिया के….
तूने उसी दुनिया में हमें,कमजोर सा पूरू बना दिया…..

अरमानों की इस कायनात में हर पल रंगीन सा एक ख्वाब सजाते थे…
बड़े करीने से तूने, ख्वाबों की जन्नत का मंजर जला दिया….

वाह रे खुदा तू भी बड़ा अजब गजब है
इस मतलब की दुनिया में बेमतलब सा बना दिया….

मुद्दतों से जिंदगी जीने का जज्बा रखते थे हम…
तूने बड़ी शिद्दत से बेउम्मीदों का मीनार चिना दिया…..
बेईमान सहरा में तूने,हमें ईमान का समंदर बना दिया

तुझसे हम शिकवा शिकायत करते भी तो कैसे…
बड़ी मोहलत में तूने, हमें अपना पीर जो बना दिया….

वाह रे खुदा तू भी बड़ा अजब गजब है
इस मतलब की दुनिया में बेमतलब सा बना दिया……

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