मशहूर नाटककार और कहानीकार कमल काबुलीवाला नाटक मोटी चमड़ी वाला
मशहूर नाटककार और कहानीकार कमल काबुलीवाला के निर्देशन और अदाकारी में पिछले हफ्ते नाटक मोटी चमड़ी वाला की पहली दो प्रस्तुतियां मैक्स म्युलर भवन में की गयीं जहाँ कि दर्शक सारा समय नाटक की दुनिया में तल्लीन और मंत्रमुग्ध नज़र आये। गौरतलब है कि मूल जर्मन नाटक का अनुवाद भी काबुलीवाला ने खुद ही हिंदी में किया है।
मोटी चमड़ी वाला एक हास्यास्पद और प्रफुल्लित करने वाला ४५ मिनट का एक बेहद लाजवाब नाटक है जिसमें स्कूलों और कॉलेजों में खिल्ली उड़ाने और दादागिरी करने जैसे अति संवेदनशील विषय पर एक रेखांकित संदेश दिया गया है। दुनिया का लगभग हर बच्चा इसका शिकार होता है। बच्चे जाने-अनजाने में दूसरे बच्चों की खिल्ली या मज़ाक बहुत सी वजहों से उड़ा देते हैं जैसे त्वचा का रंग, शरीर का आकार, जाति, बुद्धि, मंदता, ऊंचाई, लैंगिक-रुझान, किसी का अंतर्मुखी या बहिर्मुखी व्यवहार, जब कोई अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर पाता, या जब कोई हमेशा अच्छे अंक प्राप्त करता है, वगैरह वगैरह । किसी न किसी रूप में बच्चे खिल्ली का शिकार हो ही जाते हैं ।
खिल्ली उड़ाना सभी रूपों में होता है चाहे वह गाली-गलौज हो, छींटाकशी, छेड़छाड़ करना, अटपटे नाम रखकर चिढ़ाना, साथ न खिलाना, बहिष्कृत करना, बात न करना, ताने देना और तो और शारीरिक हमला और यौन शोषण भी । बहुत से बच्चे इस तरह के व्यवहार से बचने के लिए अपनी ही बनाई एक अदृश्य आतंरिक गुफा में चले जाते हैं, किसी से कुछ भी नहीं कह पाते और सिर्फ कुछ ही अपने सबसे अच्छे दोस्तों, भाई-बहनों, माता-पिता या शिक्षकों से बात करते हैं उनसे सलाह लेते हैं। लेकिन उनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं जो कई सालों तक बचपन के इस सदमे के बारे में बिना किसी को बताये चुपचाप इसे झेलते रहते हैं और कुछ इसके शिकार भी हो जाते हैं और अंत में आत्महत्या तक कर लेते हैं।
रघु के साथ क्या होता है जब वह अपने नए स्कूल, अपनी नयी क्लास में जाता है? बाकि बच्चे उसे किस नज़र से देखते हैं? रघु उन्हें आखिर अटपटा और गैंडा क्यों लगता है? क्या उसकी क्लास के बच्चे खुद किसी असुरक्षा से गुज़र रहे हैं? क्या वे जानबूझकर उसके साथ अलग व्यवहार कर रहे हैं या वे ख़ुद किसी डर में हैं? और हैं भी तो आख़िर क्यों?
दूसरी तरफ रघु जो दूसरों की नज़रों में एक गेंडा है, अपनी नई कक्षा में दोस्त बनाने के लिए कौन-कौन से मज़ेदार तरीके अपनाता है? कौन उसका दोस्त बनता है कौन उसकी मदद करता है और कौन नहीं करता? वह क्या कुछ करता है जिससे वह दूसरों पर एक बढ़िया ज़ोरदार प्रभाव डाल सके और उनका दोस्त बन सके?
कमल प्रुथी द्वारा अनुवादित नाटक मोटी चमड़ी वाला देखें और जानें कि रघु की कहानी आपके बचपन की कहानी से कितनी मिलती जुलती है और आख़िर कैसे आगे बढ़ती है। यक़ीनन आपको भी अपना बचपन और स्कूल के दिन याद आ जायेंगे।
इस पुरस्कार विजेता नाटक का एक सार्वभौमिक आकर्षण है और ये सभी आयु वर्ग के बच्चों, कॉलेज के छात्रों, शिक्षकों, माता-पिता, सलाहकारों को हंसने के साथ-साथ सोचने और विचार विमर्श करने पर भी मजबूर करता है। नाटक उन सभी लोगों के लिए प्रासंगिक है जिन्हे हंसने, क्षमा करने, विचार-मंथन करने, मुद्दों और उनके हल पर चर्चा करने और जीवन में आगे बढ़ना पसंद है।