माता रानी का अनोखा दरबार जहाँ बलि देने के बावजूद नहीं बहता रक्त !

कुमार उदय

अपनी इस ख़ास रिपोर्ट में आज हम आपको एक ऎसी देवी के दर्शन कराने जा रहे हैं जिनको जगत कल्याण के लिए अपने ही भक्त का संहार करना पडा था। यहाँ पर शिव और शक्ति दोनों के एक साथ दर्शन होते हैं।यही नहीं हजारों साल पुराने इस मंदिर में बलि तो दी जाती है लेकिन रक्त की एक बूद तक नहीं गिरती। यहाँ पर बाँधी जाती है मन्नतों की घंटी और माता रानी के दर्शन मात्र से मिट जाते हैं जन्म जन्मान्तर के दुःख।तो आईये सबसे पहले जानते हैं इस मंदिर का इतिहास।

        बिहार के कैमूर की पहाड़ी की चोटी पर स्थित ये है मुंडेश्वरी भवानी का अति प्राचीन मंदिर।इस मंदिर का निर्माण कब हुआ और किसने कराया इसकी वास्तविक जानकारी तो किसी को नहीं है लेकिन बताया जाता है की यह मंदिर 635 इसवी में जानकारी में आया था। आज भले ही यह मनिदर खस्ताहाल है लेकिन इसे देखने से इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है की यह मंदिर कितना भव्य रहा होगा।करीब 600 फीट की उचाई पर स्थित यह मंदिर बिहार के भभुआ से 10 किलोमीटर  की दुरी पर स्थित है।यह मंदिर अष्ट कोणीय है जिसके गर्भ गृह में बीचोबीच चतुर्मुखी शिव लिंग स्थापित है और दाहिनी और माता रानी विराजमान हैं। कहते हैं की माता रानी की प्रतिमा पहले बाहर रखी गयी थी लेकिन बाद में इसे मंदिर के भीतर स्थापित किया गया।
 माता रानी का नाम मुंडेश्वरी कैसे पड़ा इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है।कहते हैं की प्राचीन काल में यहाँ पर मंड नाम का राजा  हुआ करता था जो माता रानी का अनन्य भक्त था।माता रानी की कृपा से इस राजा को अपार शक्तिया प्राप्त हो गयी थी और शक्ति के मद में चूर होकर राजा ने अपनी प्रजा पर जुल्म ढाना शुरू कर दिया।जब राजा का अत्याचार बढ़ता गया तो माँ ने अपना रौद्र रूप दिखाया और अपने ही भक्त का वध कर अत्याचारी राजा से लोगो को मुक्ति दिलाई।मंदिर के पुजारी ओमप्रकाश द्विवेदी बताते हैं यहाँ पर मंड नाम का राजा रहता था।और उनकी आराध्य देवी माँ मुंडेश्वरी थी।इनकी पूजा करता था और पूजा के प्रताप से वह इतना प्रतापी हो गया की अपने प्रजा पर अत्याचार करने लगा। इसपर मा ने क्रोधित होकर उस राजा का वध कर दिया जिसके चलते माँ का नाम मुंडेश्वरी पड़ा।
माता रानी की कथा जितनी रोचक है उतना ही अलग है माता को प्रसन्न करने का तरीका।यहाँ माता रानी देवाधिदेव महादेव के साथ सदियों से अपने भक्तो का कल्याण करती आ रही है और यही कारण है की जो भी माता रानी की महिमा सुनता है माँ के दरबार में दौड़ा चला आता है।  शक्ति की आराधना शिव के बिना अधूरी मानी जाती है और यह एक बहुत ही बड़ा संयोग है की यहाँ पर मुंडेश्वरी भवानी के इस मंदिर में देवाधिदेव भोले शंकर भी विद्यमान है।यहाँ मातारानी के आशीर्वाद के साथ देवाधिदेव की भी कृपा बरसती है।यही कारण है की यहाँ पर पुरे साल भक्तो का तांता लगा रहता है।
       अनादिकाल से शिव और शक्ति का मिलन ही संसार के संचालन का कारक रहा है।मुंडेश्वरी भवानी के इस मंदिर में भी शिव और शक्ति का परम मिलन परिलक्षित होता है।माता रानी ने जहा अत्याचारी राजा  मंड  का संहार कर लोगो का कल्याण किया तो वही शिव भी भक्तो को दर्शन देकर उनका जीवन सफल रहते हैं। माँ मुंडेश्वरी भवानी की कीर्ति दूर दूर तक फैली हुयी है। इस कीर्ति का ही प्रताप है की यहाँ पर आस पास के इलाके के साथ दूर दराज के लोग भी माता रानी के दर्शन के लिए खिचे चले आते हैं।सुदूर पहाड़ी इलाका,टेढ़े मेढ़े पथरीले रास्ते और 600 फीट से ज्यादा की कठिन चढ़ाई भी भक्तो के कदम को रोक नही पाती।माता रानी सबकी सुनती हैं और सबका दामन खुशियों से भर देती हैं।श्रद्धालू अजय कुमार बताते हैं की मैंने सुना था की यहाँ पर मुंडेश्वरी भवानी के दरबार में आकर जो भी व्यक्ति मांगता है उसे वो पुर्णतः मिल जाता है।  हमारी भी श्रद्धा है की मैं भी कुछ मांगना चाहता हूँ।माँ मेरी मनोकामना जरुर पूरी करेगी।
         यूं तो शक्ति की आराधना के लिए बलि का विधान सदियों से चला आ रहा है।इसके पीछे ऐसी मान्यता मानी जाती है की देवी खुश होगी और मनचाहा वरदान देंगी। माता मुंडेश्वरी को भी प्रसन्न करने के लिए जीव बलि दी जाती है लेकिन माता का यह दरबार कभी रक्त रंजित नहीं होता।यहाँ पर माता रानी अपने भक्तो को बेहतर भविष्य का भी आशीर्वाद देती है। भक्तो की झोली खुशियों से भरने वाली और अत्याचारी राजा मंड का संहार करने वाली माँ मुंडेश्वरी को बकरे की बलि भी दी जाती है लेकिन मंदिर का यह सिद्ध परिसर कभी भी जीव हत्या का गवाह नहीं बना ।यूं तो मुंडेश्वरी भवानी को साधारणतया नारियल और चुनरी का प्रसाद चढ़ाया जाता है लेकिन विशेष मन्नत की प्राप्ति होने पर माता रानी के भक्तो द्वारा बकरे की बलि दिए जाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर बकरे को माँ के मंदिर में ले आते हैं और माँ के चरणों में समर्पित कर देते हैं।लेकिन यहाँ पर बकरे की जान नहीं ली जाती बल्कि उसकी जीवित बलि दी जाती है।कैमूर की पहाड़ी पर विराजमान माता रानी का चमत्कार यही खत्म नहीं होता।माता रानी आम लोगो को खुशियों का वरदान तो देती ही हैं साथ ही साथ तंत्र साधना करने वाले साधको को भी सिद्धि का वरदान प्रदान करती हैं।यहाँ पर मनोकामना पूरी करने के लिए भक्त बांधते हैं श्रद्धा का धागा और टांगते हैं आस्था की घंटी।मंदिर परिसर में जगह जगह बंधे धागे और सीढियों पर लगी ये घंटियाँ भक्तो की आस्था का प्रमाण हैं।यहाँ पर मन्नत पूरा होने के लिए धागा बाँधने और मन्नत पूरी होने पर घंटियां टांगने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। भक्त यहाँ आते हैं माँ के दर्शन करते हैं और मन्नत का धागा और बिस्वास की घंटी बांधते है।
माता रानी के दरबार में यूं तो भक्तो का आना लगातार लगा रहता है।लेकिन नवरात्री के नौ दिनों में यहाँ पर आम भक्तो के साथ साथ तंत्र शाधना करने वाआलो की भी भीड़ जमा होती है।माँ की पवित्र छाया में ये साधक अपनी सिद्धियाँ प्राप्त करते हैं।साधक मृतुन्जय बताते है की माँ का यह मंदिर प्राचीनतम है और सिद्ध पीठ है।यहाँ पाठ करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
       माता रानी का यह चमत्कारी दरबार हजारों साल से भी ज्यादा समय से भक्तो के कल्याण के लिए यहाँ विद्यमान है। देवी माँ हर किसी का दामन खुशियों से भर देती है।यही कारण है की यहाँ लोग अपनी बिगड़ी बनाने पूरी श्रद्धा और विश्वाश के साथ आते हैं और मातारानी से सुख शांति और समृद्धि का आशीर्वाद लेकर जाते हैं।

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