कोरोना वायरस पंडेमिक बनाम प्राइवेट स्कूल संचालकों का लक-डाउन

सन दो हजार दस में करन जौहर की एक मूवी आई थी – माई नेम इज़ खान ! इस मूवी का एक डायलाग उन दिनों बहुत फेमस हुआ था ” माई नेम इज़ खान और मैं टेररिस्ट नहीं हूँ” ! आज के परिप्रेक्ष में निजी स्कूल संचालकों की भी कुछ ऐसी ही मनस्थिति है – मन करता है चीख चीख कर बोलूं “मैं एक प्राइवेट स्कूल संचालक हूँ और मैं राष्ट्रदोही नहीं हूँ ! जी हाँ आज जिसे देखो प्राइवेट स्कूल वालों की नुक्ताचीनी करने पर तुला हुआ है। मैं विगत तीन दशक से उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में निजी स्कूल के संचालन का काम करता आ रहा हूँ। मेरे विद्यालय से निकले हुए तमाम विद्यार्थी आज देश विदेश में सफलतापूर्वक भारत देश का नाम रोशन कर रहे हैं।
कोरोना वैश्विक महामारी और तत्पश्चात लॉकडाउन की स्थिति से निस्संदेह लोगों की कठिनाइयां बढ़ीं हैं। परन्तु न जाने क्यों आम जनता की सारी बंदूकें आज प्राइवेट स्कूल ऑपरेटर्स पर तन गयीं हैं ! तमाम मीडिया में प्राइवेट स्कूल वालों के बारे में इतनी निंदनीय और हीन विचारधाराएं प्रवाहित हो रहीं हैं कि दीर्घ तीस वर्षों तक इस शिक्षा-संकल्प में अपना सबकुछ न्योछाबर करने के बाद भी आज प्राइवेट स्कूल संचालन के पेशे में होने के नाते अपने आप को भीतर से कुंठित महसूस कर रहा हूँ। सरकार की भ्रामक नीतियां, उसपर समाचार पत्रों के परस्नातकी विश्लेषण, व्हाट्सअप पंडितों के कटाक्ष, फेसबुक पर जो तमाम देशभक्त दिनों रात देश को डुब जाने और लूट जाने से बचाने में व्यस्त रहते हैं, उनकी तीक्ष्ण टिप्पणियां – सबकुछ मिलकर यही साबित करने पर तुले हुए हैं कि हमारे प्राइवेट स्कूलों में जो खेल के मैदान होते हैं उनके नीचे असल में कुबेर के तहखाने होते हैं जहाँ से जितना चाहे निकलता जाओ खजाना कभी ख़तम नहीं होगा। सर्वप्रथम 7 अप्रैल को प्रमुख सचिव उत्तर प्रदेश का सर्कुलर प्रकाशित किया जाता है जिसके तहत प्राइवेट स्कूलों को यह आदेश दिया जाता है कि वे विद्यार्थिओं से हर वर्ष की तरह तीन महीने की फीस एक साथ न लें और न ही इसके लिए अभिभावकों पर कोई दबाव बनाये – यह आदेश तो अपने आप में बिलकुल सही था और इसके अनुपालन के लिए हम सभी पप्राइवेट स्कूल संचालक प्रतिबद्ध हैं भी।
परन्तु सारी समस्या इसी सर्कुलर की हेडिंग में थी जो कुछ इस प्रकार थी “कोरोना (कोविड-19) के कारण लॉकडाउन की अवधि में शुल्क नहीं लिए जाने के सम्बन्ध में”। अगले दिन सभी अख़बारों ने और बीसीओं न्यूज़ पोर्टल्स ने इस खबर को चाट-चटनी लगाकर बड़ी बड़ी हेडिंग्स के साथ प्रकाशित कर एक बार फिर साबित कर दिया कि अभिभावकों के हित में यह देश का यह चौथा स्तम्भ कितना सजग रहता है ! सारे अख़बारों ने चीख चीख कर अभिभावकों को बोला कि सरकार ने प्राइवेट स्कूलों को तीन महीने तक फीस लेने के लिए प्रतिबंधित कर दिया है – जो कि सरासर गलत व भ्रामक न्यूज़ थी। बात यहीं ख़तम नहीं हो जाती – 17 और 18 अप्रैल को लगातार दो आदेश और पारित किये जाते हैं महामहिम सरकार द्वारा – एक यह कि विद्यालय में कार्यरत समस्त कर्मचारिओं के वेतन भुगतान शत प्रतिशत सुनिश्चित करें और दूसरा यह कि विद्यालय द्वारा लॉकडाउन की अवधि में किसी भी प्रकार का वाहन शुल्क नहीं लिया जेतेगा। ये तो वही बात हुई कि खेती भई बबूल की लेकिन फसल चाहि आम की ! अजी जब स्कूलों के पास फीस ही नहीं आएगी तब शत प्रतिशत वेतन कहाँ से दिलाएगी ? ऊपर से आदेश यह भी कि यदि अभिभावक फीस देना न चाहें तो उन्हें मैसेज भेजकर परेशान भी न किया जाय ! और न ही उनके बच्चों को स्कूल द्वारा बहुत ही कठिनाई के साथ चलाई जा रही ऑनलाइन क्लासेज में से निकला जाय ! जब वाहन नहीं चल रहे तो वाहन शुल्क नहीं लेना चाहिए – चलो मान लिया सरकार ! लेकिन अब उन वाहनों को चलने वाले ड्रिवेरों और खलासिओं को वेतन कहाँ से दिया जायेगा ? आखिर बच्चों से जो परिवहन शुल्क लिया जाता है उसी में से न हम स्कूल वाले परिवहन विभाग के स्टाफ की सैलरी देते हैं ! विशेष परिस्थिति में यदि कोई अभिभावक के सामने किसी प्रकार की सामयिक आर्थिक संकट हो तो उसका संज्ञान हम प्राइवेट स्कूल वाले वैसे भी पारम्परिक तरीके से लेते आये हैं और इस प्रकार के अभिभावकों के साथ हमेशा ही सहानुभूतिपूर्वक पेश आये हैं।
आज मैं प्रदेश के सभी अभिभावकों से एक ही प्रश्न पूछना चाहता हूँ – वर्तमान परिश्थिति में, जब पुरे विश्व में अनिश्चितता हावी है, जब हमें नहीं पता कि हमारा भविष्य कैसा होगा या आने वाले कल में हमारी जीवन शैली कैसी होगी – ऐसे में आपके लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण आज क्या है ? फेसबुक इंस्टाग्राम पर फैले आपके हजारों फ्रेंड्स ? या 4 – 5 बैंकों में रखे आपके कुछ लाख या फिर करोड़ रुपये ? या उन बैंकों के लाकरों में सहेजे गए तमाम गहने ? या गाँव शहर में फैली आपकी जमीन जायदाद या आपकी संतान और उसका भविष्य ? निस्संदेह किसी भी संतान प्रेमी जागरूक अभिभावक का उत्तर में संतान ही सर्वोपरि होगी। तो क्या वर्तमान परिस्थिति में आप अपनी संतान को घर की देहरी से आगे तक भी जाने देना चाहते हैं ? नहीं, न ?
ऐसे में अपने अपने घरों में रहकर अपनी गृहस्थी के तमाम काम काज के साथ साथ अगर आज सैकड़ों शिक्षक शिक्षिकाएं निहायत जद्दो जहद के साथ आपके बच्चे को ऑनलाइन क्लासेज के माध्यम से पढ़ा रहे हैं तो वो सब नौटंकी है ? आपके बच्चे की शिक्ष की ज्योत जिन अध्यापकों ने पहले से दोगुनी मेहनत करके भी जला रखी है उन्हें उनके परिश्रम के बदले विद्यालयों से वेतन नहीं मिलने चाहिए ? कुछ अति सामाजिक प्राणी फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर जाकर इन स्कूलों के खिलाफ इतना जहर उगलते हैं और इतनी तिरस्कृत भाषा का इस्तेमाल करते हैं इन शिक्षा के मंदिरों के विरुद्ध कि उसकी जितनी निंदा की जाय कम है। कितनी विकृत मानसिकता वाले होते होंगे ये लोग ! वे भूल जाते हैं कि उनके द्वारा उगले जा रहे जहर उनके बच्चों तक भी पहुँचते हैं तथाकथित सोशल मीडिया के माध्यम से और तब उन बच्चों की मानसिकता पर इसका क्या प्रभाव पड़ता होगा !? जब प्राइवेट स्कूल ऑनलाइन क्लासेज बाकायदा टाइम टेबल में बांधकर नियमित तरीके से चला रहा है तब इसे सीरियस स्कूलिंग क्यों नहीं मानि जा सकती ? आखिर देर से ही सही, देखा देखि सरकारी स्कूल वाले भी तो इस ऑनलाइन पढ़ाई कल्चर को अपना रहे हैं।
क्यों अभिभावकों को लगता है की इस ऑनलाइन पढाई की स्कूलों को फीस नहीं मांगनी चाहिए ? 28 अप्रैल को दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय के तहत यह स्पष्ट शब्दों में कहा कि ऑनलाइन पढाई कोई आसान काम नहीं और इसके लिए स्कूलों को अपनी नियमित फीस लेने से रोका नहीं जा सकता। जिन अभिभावकों को लगता है कि हमारे स्कूल्ज फीस के लिए मैसेज भेजकर उन्हें परेशान कर रहे हैं या उन्हें तो इस वैश्विक महामारी से ग्रस्त बेचारे अभिभावकों से फीस की बात ही नहीं करनी चाहिए उनसे हम आज पूछना चाहते हैं क्या इस महामारी के दंश से हमारे शिक्षक वंचित हैं ? उन्हें अपने परिवार के लिए राशन-भोजन की व्यवस्था नहीं करनी है ? यदि आपका लुंगी के ऊपर शर्ट टाई पहनकर बॉस की मीटिंग अटेंड करना या फिर बॉस बनकर अपने अधीनस्थों की मीटिंग लेना ‘वर्क फ्रॉम होम’ की श्रेणी में आता है, तो एक टीचर का घर बैठे इंटरनेट के माध्यम से पढ़ाना महज दिखावा या फीस लेने का बहाना क्यों ? ज़रा सोचिये जिस दिन प्रधानमंत्रीजी ने घोषणा की थि कि आज रात बारह बजे से सम्पूर्ण देश में लॉकडाउन घोषित किया जाता है, क्या उस दिन हमारे टीचर्स को ये बात पता थी कि आने वाले तीन चार महीनों तक उन्हें ऑनलाइन पढ़ना होगा बच्चों को ? नहीं न ! हम में से किसी को भी नहीं पता था और न अब भी पता है कि आने वाला कल कैसा होगा ! फिर भी इन टीचर्स के हौसले तो देखिये ! इन्होने घर पर उपलब्ध टाट, चटाई से लेकर टैब लैपटॉप हर चीज़ का बेहतरीन इस्तेमाल निकाल लिया अपनी नवोन्मेषी प्रतिभा और अदम्य निष्ठा का परिचय देते हुए – आज शहर का, प्रदेश का हर बच्चा अपने घरों में माता पिता के संरक्षण रहते हुए अपने चहेते टीचरों से रोज पढाई कर रहे हैं। जरा सोचिये यदि हम प्राइवेट स्कूल वाले इस तरह ऑनलाइन क्लासेज का विकल्प न निकालते और आपके बच्चे दिन भर घर बैठे कंप्यूटर में गेम खेलते या फिर व्हाट्सएप्प या इंस्टा पर दोस्तों संग चैटिंग कर रहे होते तो उनमे दो तीन महीनों के भीतर कितनी ज्यादा सांस्कारिक क्रांति आ गयी होती !
जिन अभिभावकों को लगता है कि उन्हें ऑनलाइन पढाई के लिए स्कूलों को फीस नहीं देनी चाहिए उनसे कुछ और सवाल – क्या आपको अपने ऑफिस से वेतन मिला ? क्या आपने बिजली बिल का भुगतान किया ? क्या आपने वर्तमान में बढ़ी हुई जीएसटी के दर से घरेलु वस्तुएं नहीं खरीदी ? क्या आपने अपने बच्चे की ऑनलाइन कोचिंग की फीस भरी ? क्या, ईश्वर न करे, यदि जरुरत पड़ी इस समय तो, आप किसी डॉक्टर की ऑनलाइन टेली काउंसलिंग की फीस भरने से गुरेज करेंगे ? क्या यदि आपकी पत्नी या पति किसी स्कूल में अध्यापन कला कार्य कर रहे होते तो भी आपका यही मानना था कि स्कूलों को इस लॉकडाउन की अवधी की फीस नहीं लेनी चाहिए ? क्या आपने अपनी डिश टीवी का रिचार्ज भरवाया ? आपके घर चल रहा वाई फाई को अगर रिचार्ज करना पड़े तो आप करेंगे इस समय ? अगर ये सारी जरूरतें आपके लिए अपरिहार्य है तो एक टीचर भी तो इसी समाज का हिस्सा है !
क्या आपने कभी सोचा है कि क्या हमें कर्मचारिओं के भविष्य निधि, ईएसआई, वाहनों के इन्सुरेंस, आरटीओ व नगर निगम के तमाम अधिकर, बिजली बिल, डीजल के दाम, जीइसटी रिटर्न आदि में कभी किसी प्रकार की छूट मिली है ? या भविष्य में मिलेगी ? क्या किसी ने कभी सोचा है कि अभिभावकों द्वारा फीस नहीं जमा करने के कारण धन की जो अभूतपूर्व कमी हमारे सामने उत्पन्न हुई है उससे उबरकर हम प्राइवेट स्कूल ऑपरेटर्स कैसे अपने कर्मचारिओं करोड़ों रुपये के वेतन आदि का भुगतान कर पाएंगे ? क्या इस संकट से उबारने के लिए सरकार हमें कभी किसी प्रकार का अनुदान देगी ? क्या हमारी इस लाचारी के कारण आने वाले निकट भविष्य में लाखों शिक्षण व शिक्षणेतर कर्मचारिओं के परिवारों में बेहद भारी कठिनाई नहीं खड़ी हो जाएगी ? आखिर हमारे इन तमाम मूर्धन्य प्रश्नों के जवाब कहाँ हैं ? और आप वीरतापूर्वक सोशल मीडिया पर तंज कसते हैं कि ये धनलोलुप हैं ! इन्हें समाज की क्या फ़िक्र !
हमारे बच्चों को प्रतिदिन इस संकट की घडी में भी क्रियाशील तरीके से दैनंदिन अनुशीलन में जिन शिक्षक शिक्षिकाओं ने अथक मेहनत करके एक सृजनशीलता के सूत्र में बांध रखा है उन्हें तो हम सभी को दंडवत नमन करना चाहिए और कोटिशः आभार प्रकट करना चाहिए – वे भी आज देश के कोरोना योद्धा हैं !
प्राइवेट स्कूल वालों का राष्ट्र निर्माण में जो योगदान है वह किसी के तस्दीक के मोहताज नहीं। देश की आधी से ज्यादा शिक्षा प्रणाली हम जैसे प्राइवेट स्कूल वालों की बागडोर में ही सदिओं से महफूज रही है और आने वाले समय में भी रहेगी। देश के अस्सी प्रतिशत सरकारी अधिकारिओं के बच्चे हमारे ही स्कूलों से पढ़कर अफसर बनते हैं। राष्ट्र के निर्माण में हम निजी स्कूल वालों की जो प्रतिबद्धता है वो बेशक आगे भी रहेगी चाहे हमें कितनी ही कठिनाइओं का सामना क्यों न करना पड़े।

संदीप मुख़र्जी

लेखक परिचय –

एक स्वतंत्र व गैर पेशेवर लेखक की हैसीयत से समसामयिक विषयों पर प्रायः लिखा करते हैं। इनके कई लेख एजुकेशन वर्ल्ड, करियर ३६०, पांचजन्य, एजुकेशन टुडे, एलट्स, एडूबेंच, दैनिक जागरण आई नेक्स्ट, पूर्वा पोस्ट, सच की दस्तक, प्रभात खबर आदि समाचार पत्र – पत्रिकाओं में एवं उनके वेब पोर्टल्स पर प्रकाशित हो चुके हैं ।

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